जज-वकील आए-गए चक्रधारी सिंह कोर्ट में
सुधीर श्रीवास्तव, रांची
08/08/10 | Comments [0]
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एक सच्ची कहानी चक्रधारी सिंह की। पेशे से वकील या जज नहीं। पर, कोर्ट से उनका बहुत गहरा रिश्ता रहा है। उनकी उम्र 83 साल हो गई है, फिर भी रिटायर नहीं हुए हैं। दरअसल, मामला जुड़ा है एक मुकदमे से। चक्रधारी ने भइयादी (गोतिया-रिश्तेदार) बंटवारे को लेकर 1962 में पार्टिशन सूट (44/1962) दाखिल किया था। तब उम्र थी 35 साल। आज 83 साल के हो चुके हैं, पर केस का कोई फैसला नहीं हो सका है। कांपते हाथों में फाइल दबाए थरथराते कदमों से वे अमूमन हर दिन कोर्ट आते हैं। बताते हैं, रांची सिविल कोर्ट की दीवारों को अपनी आंखों के सामने बनते देखा। कितना कुछ बदल गया, पर कुछ नहीं बदला तो उनके मुकदमे की तारीखों का सिलसिला। 35 साल की उम्र में जज बनने वाले लोग भी रिटायर हो गए। वकील-मोख्तार सब बदल गए। रांची बदल गई, दुनिया बदल गई। तार-चिट्ठी का जमाना लद गया, मोबाइल आ गया। पर, चक्रधारी पर तो मुकदमे का बोझ आज भी है। 48 साल का वक्त कम नहीं होता। रांची का कायम्बो (मांडर)। 1962 में अविभाजित बिहार में था, अब झारखंड में है। यहीं की पचास एकड़ जमीन का बंटवारा वाद दाखिल करते समय चक्रधारी ने सोचा भी न था कि उनकी जवानी कोर्ट में ही गुजर जाएगी। बुढ़ापे के अंतिम वक्त भी दौड़ रहे। अब तो यहां आए बगैर मन भी नहीं लगता। चक्रधारी ने गोतिया गोरखनाथ वगैरह को विपक्षी पार्टी बनाकर केस दाखिल किया था। दो साल बाद ही 1964 में उन्हें इस केस की प्रारंभिक डिक्री मिल गई। पर, गोरखनाथ ने प्रथम अपील दाखिल कर दी। यह अपील 1994 में पटना हाईकोर्ट की रांची बेंच द्वारा खारिज कर दी गई। चक्रधारी को इसमें जीत मिली, लेकिन विपक्षी ने इस आदेश के विरुद्ध तुरंत द्वितीय अपील दाखिल कर दी। 2000 में पटना हाईकोर्ट की रांची बेंच ने इस अपील को भी खारिज कर दिया। विपक्षी ने 2000 में झारखंड उच्च न्यायालय में रिव्यू दाखिल किया, यह 2001 में खारिज हो गया। इस बीच 1996 में विपक्षी ने एलपीए (लेटर पेटेंट अपील) भी दाखिल किया था। इसे भी खारिज कर दिया गया। 1998 से दखल दिहानी के लिए इजराय वाद की गुहार चल रही है। मामला लंबित है। इजराय वाद संख्या 25/1998 सब जज रांची के न्यायालय में लंबित है। करीब पांच साल पहले जमीन के कुछ हिस्से पर वादी को दखल दिहानी भी दिलाई गई है। विपक्षी गोरखनाथ की तो मृत्यु भी हो चुकी है, अब उनका पुत्र मुकदमा लड़ रहा है। यूं कहें कि एक पीढ़ी मुकदमे में गुजर गई। अब भार दूसरी पीढ़ी ्रपर। वादी-प्रतिवादी को न्याय में पूरी आस्था, पर मुकदमे का इतना लंबा खिंचना..।


  

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